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इतिहास / रश्मि प्रभा

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आदिम युग से चला इतिहास हो,
या किसी खंडहर की दीवार से टिका वर्तमान !
हम हर युग में अपने होने के प्रमाण तलाशते हैं
लेकिन क्या टुकड़ों में बंटा हुआ सत्य,
कभी भी अपना पूरा चेहरा दिखा सकता है ?

हम सुनते हैं एक पक्ष,
और बना देते हैं अंतिम निर्णय।
भूल जाते हैं
कि हर कहानी के नीचे
एक ऐसी दबी हुई चीख होती है
जो मंच पर नहीं आ पाती ।

किसी की जीत का अर्थ यह नहीं कि वह सत्य है,
और किसी की हार का अर्थ यह भी नहीं कि वह असत्य था।

विचारों की स्वतंत्रता एक उपहार है,
लेकिन उसमें विष घोलकर
किसी को जला देना,
किसी को चीर देना
स्वतंत्रता नहीं,
उन्माद है ।

ग़ुलामी का अर्थ केवल ज़ंजीरें नहीं थीं,
वह आत्मा पर पड़ी खामोशियों की
बहुत जटिल जंग थी।
और
स्वतंत्रता का अर्थ केवल जश्न नहीं,
बल्कि हर उस स्त्री, हर उस बच्ची,
युवा,मज़दूर, बुजुर्गों की गरिमा की रक्षा भी है,
जो अभी भी सवालों में कैद हैं।

हमें चाहिए वह देश
जहां बहस हो,
बहिष्कार नहीं।
जहां असहमति हो,
असभ्यता नहीं ।
जहां स्मृति हो,
पर शोषण नहीं ।