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कविता पर / कुलदीप सिंह भाटी

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1
समाज जिसे ठुकराता है,
वंचित करता है,
कविताएं उन्हें अपना लेती हैं सहजता से
इसलिए कविताओं के केंद्र
में विचरती हैं स्त्रियां।
2
कहलाते हैं जो समाज में
अछूत और पतित
कविताएँ उन्हें ही तो
हृदयंगम करती हैं बताकर पावन।
3
जिन पर कुछ भी नहीं
लिखा जाता है,
जिन पर कुछ भी नहीं
कहा जाता है,
उन्हीं पर फिर कैसे लिखी जाती हैं
कविताएँ।
4
संवेदनाओं की मृत्यु का
जीवन्त दस्तावेज और
उनके पुनः उद्भव की घोषणा
होती हैं कविताएं।