भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किसा जमाना / मंगली आला शायर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

माँ बाबू की कदर रही ना घर में चलै लुगाई की
यो किसा जमाना आग्या लोगों जड़ काटै भाई-भाई की

सच नै मानै झूठ, झूठ नै मानै सच या दुनिया रिस्वतखोर चोर होरी है
घर की घर म्हं होज्या लड़ाई आज का टैम में या दुनिया एक दूसरे की खून की प्यासी होरी है
महूँ पै भाई-भाई पीठ पीछै करै बुराई मैं बात कहुँ बिलकुल सच्चाई की
यो किसा जमाना आ गया लोगों जड़ काटै भाई-भाई की

बेटी का बल्तकार, घर की घर में मारकाट देख तेरी दुनिया बनाई का यो के हाल हो गया रये
कभी 36 बिरादरी का भाईचारा होया करता दीरे-दीरे वह भाईचारा भी खत्म हो गया रये
बाबा पाप का घड़ा भर लिया चौगर तै जय-जय कार होवै झूठ और बुराई की
यो किसा जमाना आ गया लोगों जड़ काटै भाई-भाई की