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जीवन / सुनील कुमार शर्मा

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एक ही वर्ष में
पड़ोस की ज़मीन पर उग आयीं
चार पाँच और मीनारें
माचिस की डिब्बियों की तरह
रख दिये गये फ्लैट्स
फ़्लैट के ऊपर फ़्लैट

हवा भी यहाँ सीढ़ियों से चढ़कर
ऊपर जाती होगी
गुनगुनाती धूप अन्दर आने के लिए
बालकनी खोजती होगी।

एक अकेले की छत पर
चाँद थोड़े ही उतर आता होगा
किसके हिस्से में जाने कितना आता होगा
हवा, रोशनी, आकाश,
सब ही तो बँट जाता होगा

पैमाना कोई होता तो
माप कर देखते
जीवन इन फ़्लैटों में
कितना सिकुड़ जाता होगा॥