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झूठ की हो न जाए फ़तह आज फिर / राहुल शिवाय

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झूठ की हो न जाए फ़तह आज फिर
देखना, सच को सच की तरह आज फिर

ख़ून की प्यासी रातें प्रतीक्षा में हैं
डूब जाए नहीं यह सुबह आज फिर

इश्क़ की इससे बेहतर वजह क्या कहूँ
याद तुमको किया बेवजह आज फिर

क्या हुआ गर ज़ुबां पर हैं पाबंदियाँ
दिल की बातें तू आँखों से कह आज फिर

घर के आँगन में दीवार होगी खड़ी
डाह करने लगी है कलह आज फिर

दे रही हमको क़ुदरत भी पैग़ाम कुछ
यूँ ही डोली नहीं है सतह आज फिर

साँप सड़कों पे बेछुट निकल आए हैं
नेवलों से हुई क्या सुलह आज फिर

भेड़िये जीत के मद में मदहोश हैं
मेमनों की लिखी है जिबह आज फिर

शांति कैसे उसे बातें समझाएगी
युद्ध करने लगा है जिरह आज फिर