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तथागत ! यहाँ सब मंगल है / अर्चना लार्क

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तथागत ! माया ने जीवन को घेर लिया है
युद्ध, घृणा, आरोप बढ़ते जा रहे हैं
रंग सिर्फ़ लाल दिख रहा है
हम जीवित नहीं, अधमरे हैं
और वे मर चुके हैं, जिनका जीवन नारे से अधिक निश्चित न हो सका

हम शाश्वत हैं, मंत्रों का अध्ययन जारी है, तथागत !
चरित्र, मर्यादा, शुचिता पाठ्यक्रम में है
गुरुकुल खुल चुका है

जीवन जीते एकाएक अपनी कला की याद आ गई है हमें, तथागत !
हमने मसखरी को अपना लिया है

नित प्राचीन शब्द नवीनता पर है
हम खाप - पंचायत सा जीवन लिए, दरिन्दों को शह देते
बात भी दुनिया बदलने की कर रहे हैं
हम गुलाम नहीं आज़ाद हैं न, तथागत !

सूतक का ग्रहण लग चुका है धरती पर
लाश पर पाँव रखता सपूत जागरण पर है
नींद कम, चाय ज़्यादा चर्चा ए ख़ास है
माँ का घाव नासूर बन गया है
हमने अपनी माँ को ख़रीद लिया है
हम धनवान हो गए हैं, तथागत !

कितने सम्वेदनशील थे उस काल में,
कितने मनुष्य विरोधी ?
ये बताने की बात कहाँ बचती है, तथागत !

जीभ पर उफनते जानवर
दिमाग़ की मछलियों को खा जाते हैं
आँखें सूख जाती हैं
जीवन के बचाव में
समुद्र का नमक कम पड़ गया है
सच तो ये है कि
हमारे नाव की पतवार खो गई है, तथागत !

हमारा रुदन हमारी पहचान बनती जा रही है
क्रूरता, ब्रह्माण्ड को चीर रही है
लेकिन वर्चस्व हमारा कायम हो चुका है, तथागत !

तथागत ! तुम किस शान्ति की बात करते हो ?
हमने बन्दूक की नोक पर महल खड़ा कर लिया है
बचे रिश्ते को पंक्तियों में समेट, ठेल दिया है विमर्श को

तथागत ! हम ख़ुश हैं
तुम किस दुख की बात करते हो ?

यहाँ अपने पक्ष की होड़ में हरेक चेहरा बजबजा रहा है
प्रेम सधा हुआ फॉर्मूला बन चुका है
जो हर पारी में खेला जाता है
तथागत ! तुम किस प्रेम की बात करते हो ?

हमने अपने अपने ईश्वर को सम्भालना सीख लिया है
और मनुष्य जीवन ख़तरे में पड़ गया है
यहाँ सब कुशल है, तथागत !

तुम किस धरती पर, कैसे जीव की बात करते हो ?
किस सुख के बाद दुख आता है
अन्तत: किस दुख का निवारण होता है, तथागत !?

तथागत !
यहाँ पौरुष है
लज्जा है, शुभम है
हँसी है, ठहाका है
सब मंगल है
पर बाघ को हँसता देख, हर जीव सहम क्यों जाता है, तथागत !?

आख़िर तुम किस मंगल की बात करते हो, तथागत !?

अन्धेरा घिर चुका है
चकवे का विलाप बढ़ता ही जा रहा है,
क्रौंच का भी वध हो गया है,
मेरा कोई नहीं बचा है
तुम तो आओगे न, तथागत !
बोलो, तथागत !