भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देह / ईप्सिता षडंगी / हरेकृष्ण दास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

{{KKCatKavita}

एक लड़की की
देह या मन का ’मन’ नहीं होता !
मन ही नहीं होता एक लड़की का।

जन्म से अन्त तक
उसका शरीर कितना
आवृत्त होगा
कितना अनावृत्त
यह फ़ैसला भी किसी और को लेना है।

लड़की की शरीर में भी
यौवन आता है ।।

गीत गाती है वह भी
झूमती है मलय पवन के साथ ।
स्वप्न संजोती है रंग - बिरंगे जीवन का,
मगर ख़याल में सिर्फ़,
सिर्फ़ मन ही मन में, हाय !

वह गीत गुनगुनाए – तो वेश्या
नाचे सधीर तो —असती,
स्वप्न में चली जाए तो — उसके सीमा लांघने की आशंकाएँ अनेक ।

आशंकाओं से
आतंकों से
आबद्ध कर‌ लिया जाता है
लड़की का शरीर ।

जब कभी उसके शरीर को
अपनी अधिकार में ले लेता है
कोई जादूगर
तब उसका शरीर
फटे-पुराने बिछौने की तरह
घसीटा जाता है
इधर से उधर
बार बार
बार बार।

लड़की का सुन्दर शरीर, अनावश्यक,
उपेक्षित
एक महाकाल फल ।।

ओड़िआ से अनुवाद : हरेकृष्ण दास