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विडंबना / कुंदन सिद्धार्थ
Kavita Kosh से
सच की हिफ़ाज़तका काम
झूठे लोगों को सौंपा गया
ईमानदारी की शिक्षा देने के लिए
बेईमान भर्ती हुए
अहिंसा का प्रचार-प्रसार करना था
हिंसकों की टोली लगायी गयी
राहत-सामग्रियाँ बाँटने के समय
दलाल जोशोखरोश से काम पर भिड़े थे
प्रेम से भरे लोगों की आँखें नम थीं
करुणावान रो रहे थे
ईमानदार अज्ञातवास में चले गये
भाईचारे को जीने वाले आत्महत्या के बारे में सोच रहे थे
ताज्जुब की बात यह है
कि यह सब कुछ
किसी राजा-रानी या परीलोक की दंतकथाओं में नहीं
ठीक उसी दुनिया में घट रहा था
जो मेरे देखते-देखते
बड़ी तेजी से बदलती जा रही थी
और मैं मुँह बाये
भौंचक खड़ा था
निःशब्द!