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वो हमको ख़त्म करना चाहते हैं मान के दुश्मन / धर्वेन्द्र सिंह बेदार

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वो हमको ख़त्म करना चाहते हैं मान के दुश्मन
ख़ुद अपने ही बने हैं अब हमारी जान के दुश्मन

खड़े बंदूक़ें अपनी सरहदों पर तान के दुश्मन
यक़ीनन मारे जाएँँगे ये हिंदुस्तान के दुश्मन

बहाते हैं लहू जो बेगुनाहों का दरिंदें हैं
दरिंदें भेस में इंसान के इंसान के दुश्मन

अगरचे लोभ लालच मोह माया आम अवगुण हैं
मगर ये आम अवगुण बन गए ईमान के दुश्मन

अकेलापन ये तन्हाई ये रंज-ओ-ग़म ये रुसवाई
तुम्हारी देन हैं ज़ालिम दिल-ए-नादान के दुश्मन