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सियासी शख़्स पर ज़्यादा यकीं अच्छा नहीं होता / धर्वेन्द्र सिंह बेदार

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सियासी शख़्स पर ज़्यादा यकीं अच्छा नहीं होता
सियासत में कोई भी आदमी सच्चा नहीं होता

इसे हम दिल-लगी की वह सज़ा देते कि पूछो मत
हमारा दिल अगर इक छोटा-सा बच्चा नहीं होता
 
अगर वादा किया है तो निभाएँँगे भी हम इसको
हमारा अह्द मिट्टी की तरह कच्चा नहीं होता

क़सम गीता पर रखकर हाथ खाते हों भले लेकिन
अदालत में दिया हर इक बयाँँ सच्चा नहीं होता

मियाँँ हम शायरों का घर बड़ी मुश्किल से चलता है
हमारे काम-धंधे में बड़ा गच्छा नहीं होता