भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"घर में हो टीभी / सिलसिला / रणजीत दुधु" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रणजीत दुधु |अनुवादक= |संग्रह=सिलस...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

23:20, 14 जून 2019 का अवतरण

घर में हो टीभी ई बड़का मलाल हे
सभे सुख चइन अब एकरे से भुलाल हे
जगले से सुतले रहऽ हे हरदम ई चालू
एकरा में बड़का न´ होत कोय गालू
एकरे भिर बइठ के बीबी छिलऽ हथ आलू
हम तो आदमी से अब बन गेलूँ भालू
एकरे चलते जरल तरकारी दाल हे
घर में हो टीभी ई बड़का मलाल हे।

एक दिन हमरो लगलो टीभी के जोगाड़
सोंचलूँ तनी देख-सुन ले ही समाचार
आ गेलखुन बीबी कहलखुन खबरदार
देखऽ परतिज्ञा पर हो रहल अतियाचार
कतनो गिड़गिड़यलूँ ऊ ठोक रहली ताल हे
घर में हो टीभी ई बड़का मलाल हे।

जिद पर हम अड़लूँ हो गेलो खूब रगड़ा
रगड़ा होते-होते होवे लगतो झगड़ा
हलक हम डपटलूँ ऊ फार लेलकी कपड़ा,
कर देलखुन केस बस हो गेलो लफड़ा,
जेकरा देख रहला एजऽ ऊ रगदाल हे
घर में हो टीभी ई बड़का मलाल हे।

किताब छोड़ बुतरूवन करे एकरे अभ्यास
सटके बठई हे एकदम ओकरे पास,
कारटुन सीरीयल के हो गेल विकास
देख के ई हालत, हम होल ही निरास
हमर देस के तो भविसे गड़बड़ाल हे
घर में हो टीभी ई बड़का मलाल हे।

हमरा नय हल टीभी सिनेमा के लूर
तनि गो बुतरूवा ताके टुकूर टुकूर
नानी दादी के खिस्सा हो गेलो दूर
बुतरू के सोंच के शक्ति होल चूर-चूर
रिसता आउ नाता सभे ठिसुआल हे,
घर में हो टीभी ई बड़का मलाल हे।

किरकेट के बोखार देख ही हक्का-बक्का
कोय हे दिवाना देख सचिन के चउका
कोये हे दिवाना देख धोनी के छक्का
झूम रहल कत्ते देख करीना के ठुमका
हर चइनल पर हो रहल अब गोदाल हे
घर में हो टीभी ई बड़का मलाल हे।

टीभीए देख बुतरू सब हो गेल जुबान
एने ओने बँटे लगल अब ओकर धियान।
देखऽ भाग रहल बेटा बेटी सियान
माय-बाप बन-बन के हा बइठल अनजान
भविस बिगाड़े के तो चुपका ई चाल हे
घर में हो टीभी ई बड़का मलाल हे।

बदल देलक हमर सभयता संसकिरती
इहे से समाज में आ गेलो विकिरती
सोंच की रहला बदल रहला परकिरती
चेतऽ अभियो हे कर जोड़ विनती
सभ्यता विनास के ई बड़का दलाल हे
घर में हो टीभी ई बड़का मलाल हे।
अब सभे सुख चइन एकरे से भुलाल हो।