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तवा / विनोद दास
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यह लौटने का वक़्त है
एक औरत इंतज़ार करती है
चूल्हे के पास रखे तवे के साथ
तवा ठंडा है
मैं जब कोई ठंडा तवा देखता हूँ
काँप उठता हूँ
ठंडे तवे के पास फैली है
उदास ख़ामोशी
इस उदास ख़ामोशी से
मैं निपटना चाहता हूँ
तवे को मैं तपता हुआ देखना चाहता हूँ
लेकिन यह चुनौती देता रहता है
मुझे सुबह और शाम
लौटने का वक़्त हो चला है
अभी एक आदमी
कुछ बुदबुदाता आयेगा
एक गंदे झोले के साथ
थककर चूर
आग दहकेगी तवा गरम होगा
पकते हुए आटे की गंध
चारों तरफ़ फैल जायेगी
फिर तवा सो जायेगा
ठंडे चूल्हे के पास
अगले दिन आग में जलने के लिए
बिना किसी पश्चात्ताप