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"'मन्त्र पुराने काम नं देंगें, मन्त्र नया पढ़ना है / तृतीय सर्ग/ गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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'मन्त्र पुराने काम नं देंगें, मन्त्र नया पढ़ना है
 
मानवता के हित मानव का रूप नया गढ़ना है
 
सागर के उस पार शक्ति का कैसा स्रोत निहित है?
 
ज्ञान और विज्ञान कौन वह जिससे विश्व विजित है?
 
मुझे सिंह की गहन गुफा में घुसकर लड़ना होगा
 
दह में धँस कर कालिय के मस्तक पर चढ़ना होगा
 
मुक्ति नहीं, पिंजरे में पक्षी कितना भी पर मारे
 
बिना युक्ति के राम न मिलते, कोई लाख पुकारे’
 
 
. . .
 
 
मद्य-मांस-मुक्ताचारी उस भ्रष्ट देश में जाकर
 
लौट सका है कोई अपना धर्माचरण बचाकर!
 
यद्यपि मोहन के चरित्र में तनिक नहीं है शंका
 
किन्तु मोहिनी मायावाली वह सोने की लंका
 
उस काजल के घर से अमलिन कौन भला फिर आये!
 
"मेरे भोले बालक को तो, चाहे जो, ठग जाये"
 
जननी की आँखों को लगता पुत्र सदा बालक ही
 
कितना भी हो जाय बड़ा, रहता है घुटनों तक ही
 
कंस-विजय को दया यशोदा ने देवों की माना
 
कब, रावण का जयी, राम को कौशल्या ने जाना
 
मिल पाये कैसे माँ का आदेश विदेश-गमन को?
 
चैन  न लेने देती थी चिंता मोहन के मन को
 
माँ का आकुल प्रेम उधर श्रृंखला-सदृश लिपटा था
 
पंख तोलता उड़ने को नवयौवन इधर डटा था
 
. . .
 
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02:06, 14 जुलाई 2011 के समय का अवतरण