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"'मिटे हों जो बन-बनके सपने कई (चौथा सर्ग) / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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'मिटे हों जो बन-बनके सपने कई
 
'मिटे हों जो बन-बनके सपने कई
उन्हीं में न रखना मुझे, निर्दई!
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उन्हींमें न रखना मुझे, निर्दई!
कहीं बैठ जाना न लिखने क़िताब
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कहीं बैठ जाना न लिखने किताब
 
सुना, शायरों की है आदत ख़राब  
 
सुना, शायरों की है आदत ख़राब  
 
वे जीते हैं दुहरी यहाँ ज़िंदगी  
 
वे जीते हैं दुहरी यहाँ ज़िंदगी  
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भले ही वे करते हैं सबसे निबाह  
 
भले ही वे करते हैं सबसे निबाह  
 
नहीं कुछ भी अन्दर की मिलती है थाह  
 
नहीं कुछ भी अन्दर की मिलती है थाह  
मुझे डर है, लफ़्ज़ों से साँचें में ढल
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मुझे डर है, लफ़्ज़ों के साँचें में ढल
 
न रह जाऊँ बनकर तुम्हारी ग़ज़ल
 
न रह जाऊँ बनकर तुम्हारी ग़ज़ल
 
फिरूँ मैं न राधा-सी रटते ही नाम 
 
फिरूँ मैं न राधा-सी रटते ही नाम 
 
कछारों में जमना की ही, मेरे श्याम!' 
 
कछारों में जमना की ही, मेरे श्याम!' 
 
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02:31, 21 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


'मिटे हों जो बन-बनके सपने कई
उन्हींमें न रखना मुझे, निर्दई!
कहीं बैठ जाना न लिखने किताब
सुना, शायरों की है आदत ख़राब
वे जीते हैं दुहरी यहाँ ज़िंदगी
कहीं दिल, नज़र है कहीं पर लगी
अलग उनके दिन हैं, अलग उनकी रात
निराली है दुनिया से हर उनकी बात
भले ही वे करते हैं सबसे निबाह
नहीं कुछ भी अन्दर की मिलती है थाह
मुझे डर है, लफ़्ज़ों के साँचें में ढल
न रह जाऊँ बनकर तुम्हारी ग़ज़ल
फिरूँ मैं न राधा-सी रटते ही नाम 
कछारों में जमना की ही, मेरे श्याम!'