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"'यही प्यार की थी कहानी मेरी (पाँचवाँ सर्ग) / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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सुना तुमने जिसको ज़बानी मेरी
 
सुना तुमने जिसको ज़बानी मेरी
 
कहूँ किस तरह का नशा वह रहा  
 
कहूँ किस तरह का नशा वह रहा  
दिया जिसने दुःख अनदिखा, अनकहा
+
दिया जिसने दुख अनदिखा, अनकहा
 
कशिश प्यार की मिट न पायी कभी  
 
कशिश प्यार की मिट न पायी कभी  
बड़ी उम्र के साथ वह और भी
+
बढ़ी उम्र के साथ वह और भी
 
दिया था जिसे दिल के तलघर में दाब
 
दिया था जिसे दिल के तलघर में दाब
 
नशीली हुई और भी वह शराब
 
नशीली हुई और भी वह शराब
 
'कटी साथ उसके जो रातें कभी
 
'कटी साथ उसके जो रातें कभी
खिंची दिल के परदे पे हैं आज भी
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खिँची दिल के परदे पे हैं आज भी
 
कभी प्यार लेना निगाहों से भाँप
 
कभी प्यार लेना निगाहों से भाँप
कभी बात चलने की सुनते ही काँप  
+
कभी बात चलने की, सुनते ही, काँप  
 
पलटकर छिपा लेना आँसू की बूँद  
 
पलटकर छिपा लेना आँसू की बूँद  
हथेली से देना मेरे होंठ मूँद
+
हथेली से देना मेरे होँठ मूँद
 
कभी मुँह पे घिरना उदासी का रंग
 
कभी मुँह पे घिरना उदासी का रंग
 
कभी छेड़कर मुस्कुराने का ढंग
 
कभी छेड़कर मुस्कुराने का ढंग
 
वे दिलकश अदायें, हँसी, कहकहे 
 
वे दिलकश अदायें, हँसी, कहकहे 
 
मुझे आज तक भी हैं तड़पा रहे  
 
मुझे आज तक भी हैं तड़पा रहे  
करूँ जोग, जप लाख गीता पढूँ
+
करूँ जोग-जप लाख गीता पढूँ
 
हिमालय की चोटी पे भी जा चढ़ूँ
 
हिमालय की चोटी पे भी जा चढ़ूँ
 
नहीं इससे बचने का कोई उपाय  
 
नहीं इससे बचने का कोई उपाय  
ये वह दर्द है जान लेकर ही जाय  
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ये वह दर्द है, जान लेकर ही जाय  
 
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02:34, 21 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


'यही प्यार की थी कहानी मेरी
सुना तुमने जिसको ज़बानी मेरी
कहूँ किस तरह का नशा वह रहा
दिया जिसने दुख अनदिखा, अनकहा
कशिश प्यार की मिट न पायी कभी
बढ़ी उम्र के साथ वह और भी
दिया था जिसे दिल के तलघर में दाब
नशीली हुई और भी वह शराब
'कटी साथ उसके जो रातें कभी
खिँची दिल के परदे पे हैं आज भी
कभी प्यार लेना निगाहों से भाँप
कभी बात चलने की, सुनते ही, काँप
पलटकर छिपा लेना आँसू की बूँद
हथेली से देना मेरे होँठ मूँद
कभी मुँह पे घिरना उदासी का रंग
कभी छेड़कर मुस्कुराने का ढंग
वे दिलकश अदायें, हँसी, कहकहे 
मुझे आज तक भी हैं तड़पा रहे
करूँ जोग-जप लाख गीता पढूँ
हिमालय की चोटी पे भी जा चढ़ूँ
नहीं इससे बचने का कोई उपाय
ये वह दर्द है, जान लेकर ही जाय