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"अँजुरी से पी लूँगा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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तेरा दुख दरिया
 
तेरा दुख दरिया
 
सीने में भर लूँगा
 
सीने में भर लूँगा
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कितने युग बाद मिले
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पतझर था मन में
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तुम बनकर फूल खिले।
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101
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फिर से वह राग जगा
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ताप मिले पिंघले
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कुछ ऐसी आग लगा।
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102
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मिलकरके रूप सजा
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बरसों से बिछुड़े
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जी भरकर कण्ठ लगा।
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103
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पर्वत पर घाटी में
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गुंजित स्वर तेरा
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नदियों में माटी में।
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104
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तुम से थे तार जुड़े
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साँसों की खुशबू
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बन मनके भाव उड़े।
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105
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हम तो इतना जाने
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दुनिया नफरत की
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ये प्यार न पहचाने*
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12:02, 23 मार्च 2021 का अवतरण

97
तुमसे नाराज़ नहीं
तुम बिन गीत कहाँ
तुम सुर का साज़ रही।
98
दिल को भी सी लूँगा
सब तेरे आँसू
अँजुरी से पी लूँगा।
99
कुछ ऐसा कर लूँगा
तेरा दुख दरिया
सीने में भर लूँगा
100
कितने युग बाद मिले
पतझर था मन में
तुम बनकर फूल खिले।
101
फिर से वह राग जगा
ताप मिले पिंघले
कुछ ऐसी आग लगा।
102
मिलकरके रूप सजा
बरसों से बिछुड़े
जी भरकर कण्ठ लगा।
103
पर्वत पर घाटी में
गुंजित स्वर तेरा
नदियों में माटी में।
104
तुम से थे तार जुड़े
साँसों की खुशबू
बन मनके भाव उड़े।
105
हम तो इतना जाने
दुनिया नफरत की
ये प्यार न पहचाने*