भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अंगिका फेकड़ा / भाग - 10

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


घुघुआ घू, मलेल फूल
घुघुआ मना, उपजल धना
सब धान खाय गेल सुग्गा मैना
मन्ना रे मन्ना लब्बोॅ घर उठेॅ
पुरानोॅ घर बैठेॅ।


अटकन-मटकन, दहिया चटकन
खैरा गोटी रस रस डोले
माघ मास करेला फूले
नाम बताव के तोहें गोरी
जमुआ गोरी
तोहोरोॅ सोहाग गोरी
लाग लगावेॅ, खीर पकावेॅ
मिट्ठोॅ खीर कौनें खाय
दीदी खाय, भैयाँ खाय
कान पकड़लेॅ बिनू जाय।


झाँय-झूँ खपड़ी धीपेॅ
लाबा फूटेॅ, महुआ टुभुक।


कन्ना गुज-गुज, महुआ डार
कहिया जैभेॅ गंगा पार
गंगा पार में खेती के आढ़
तेलियाँ मारथौं चढ़ले लात
हमरोॅ हाथ लाल, हमरोॅ हाथ लाल।


कन्ना गुज-गुज, महुआ डार
के-के जैभेॅ गंगा पार
गंगा पार में बाघ छै, बघनिया छै
सिकरी डोलाबै छै
गंगा पार में उपजल धान
धीया पूता के काटबै कान।


अड़गड़ मारूँ, बड़ घर मारूँ
बासी भात खेलि-खलि खाँव।


नूनू खाय दूध भत्ता, बिलैयाँ चाटेॅ पत्ता
चाटलेॅ-चाटलेॅ गेल पिछुआड़
झाँझीं कुत्ती लेल लिलुआय
वहाँ से आयल गंगा माय
गंगा मैया दिएॅ आशीष
जीयेॅ नूनू बाबू लाख बरीस
नया घोॅर उठो पुरानोॅ घोॅर खसो।


हरदी के दग दग
माँटी के बेसनोॅ
हम नै जैबोॅ
मामू के ऐंगनोॅ
मामू के बेटी
बड़ झगड़ाही
माँगेॅ थारी
दिएॅ कढ़ाही।