भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अंतर से मत जाना/ गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=कितने जीवन, कितनी बार / ग…)
 
 
पंक्ति 15: पंक्ति 15:
 
मंद-मंद मुस्काना
 
मंद-मंद मुस्काना
 
 
 
 
बनाकर पिता, बंधु, गुरु, सहचर  
+
बनकर पिता, बंधु, गुरु, सहचर  
 
देते रहना बोध निरंतर  
 
देते रहना बोध निरंतर  
 
और शेष का पथ आने पर  
 
और शेष का पथ आने पर  

02:36, 17 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


अंतर से मत जाना
यह संसार भुला भी दे पर तुम मन से न भुलाना
 
भाग्य भले ही मुझसे ऐंठे
कभी, कहीं सुर-ताल न बैठे
फिर भी तुम प्राणों में पैठे
मंद-मंद मुस्काना
 
बनकर पिता, बंधु, गुरु, सहचर
देते रहना बोध निरंतर
और शेष का पथ आने पर
बढ़कर गले लगाना

अंतर से मत जाना
यह संसार भुला भी दे पर तुम मन से न भुलाना