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अंधियारे से डरना कैसा / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

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अम्मा बोली-सूरज बेटे,
जल्दी से उठ जाओ।
धरती के सब लोग सो रहे,
जाकर उन्हें उठाओ।

मुर्गे थककर हार गये हैं,
कब से चिल्ला चिल्ला।
निकल घोंसलों से गौरैयाँ,
मचा रहीं हैं हल्ला।
तारों ने मुँह फेर लिया है,
तुम मुँह धोकर जाओ।

पूरब के पर्वत की चाहत,
तुम्हें गोद में ले लें।
सागर की लहरों की इच्छा,
साथ तुम्हारे खेलें।
शीतल पवन कर रहा कत्थक,
धूप गीत तुम गाओ।

सूरज मुखी कह रहा भैया,
अब जल्दी से आएँ।
देख आपका सुंदर मुखड़ा,
हम भी तो खिल जायें।
जाओ बेटे जल्दी से जग,
के दुख दर्द मिटाओ।

नौ दो ग्यारह हुआ अँधेरा,
कब से डरकर भागा।
रहा रात भर राजा जग का,
सुबह राज पद त्यागा।
समर क्षेत्र में जाकर दिन पर,
अब तुम रंग जमाओ।

अंधियारे से डरना कैसा,
क्यों उससे घबराना?
हुआ उजाला तो निश्चित ही,
है उसका हट जाना।
सोलह घोड़ों के रथ चढ़कर,
निर्भय हो कर‌ जाओ।