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[[Category:लम्बी कविता]]
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एकाएक हृदय धड़ककर रुक गया, क्या हुआ!!<br>
नगर से भयानक धुआँ उठ रहा है,<br>
कहीं आग लग गयी, कहीं गोली चल गयी।<br>
साथ-साथ घूमते हैं, साथ-साथ रहते हैं,<br>
साथ-साथ सोते हैं, खाते हैं, पीते हैं,<br>
जन-मन उद्देश्य!!<br>
पथरीले चेहरों के ख़ाकी ये कसे ड्रेस<br>
घूमते हैं यंत्रवत्,<br>
वे पहचाने-से लगते हैं वाक़ई<br>
कहीं आग लग गयी, कहीं गोली चल गयी!!<br><br>
सब चुप, साहित्यिक चुप और कविजन निर्वाक्<br>
धूल के कण में <br>
अनहद नाद का कम्पन<br>
ख़तरनाक!!<br>
मकानों के छत से <br>
गाडर कूद पड़े धम से।<br>
शून्याकाश में से होते हुए वे<br>
अरे, अरि पर ही टूट पड़े अनिवार।<br>
यह कथा नहीं है, यह सब सच है, भई!!<br>कहीं आग लग गयी, कहीं गोली चल गयी!!<br><br>
किसी एक बलवान् तन-श्याम लुहार ने बनाया<br>
आत्मा के चक्के पर चढ़ाया जा रहा<br>
संकल्प शक्ति के लोहे का मज़बूत<br>
ज्वलन्त टायर!!<br>
अब युग बदल गया है वाक़ई,<br>
कहीं आग लग गयी, कहीं गोली चल गयी।<br><br>
जिनके कि जल में<br>
सचेत होकर सैकड़ों सदियाँ, ज्वलन्त अपने<br>
बिम्ब फेंकतीं‍‍!!<br>
वेदना नदियाँ<br>
जिनमें कि डूबे हैं युगानुयुग से<br>
विभिन्न क्षेत्रों में कई तरह से करते हैं संगर,<br>
मानो कि ज्वाला-पँखरियों से घिरे हुए वे सब<br>
अग्नि के शत-दल-कोष में बैठे!!<br>
द्रुत-वेग बहती हैं शक्तियाँ निश्चयी।<br>
कहीं आग लग गयी, कहीं गोली चल गयी।<br>
मानो कि कल रात किसी अनपेक्षित क्षण में ही सहसा<br>
प्रेम कर लिया हो<br>
जीवन भर के लिए!!<br>
मानो कि उस क्षण<br>
अतिशय मृदु किन्ही बाँहों ने आकर<br>
कस लिया था इस भाँति कि मुझको<br>
उस स्वप्न-स्पर्श की, चुम्बन की याद आ रही है,<br>
याद आ रही है!!<br>
अज्ञात प्रणयिनी कौन थी, कौन थी?<br><br>
अलग-अलग वातावरण हैं बेमाप,<br>
प्रत्येक अर्थ की छाया में अन्य अर्थ<br>
झलकता साफ़-साफ़!<br>
डेस्क पर रखे हुए महान् ग्रन्थों के लेखक<br>
मेरी इन मानसिक क्रियाओं के बन गये प्रेक्षक,<br>
वह दिखा, वह दिखा<br>
वह फिर खो गया किसी जन यूथ में...<br>
उठी हुई बाँह यह उठी रह गयी!!<br><br>
अनखोजी निज-समृद्धि का वह परम उत्कर्ष,<br>
मैं उसका शिष्य हूँ<br>
वह मेरी गुरू है,<br>
गुरू है!!<br>
वह मेरे पास कभी बैठा ही नहीं था,<br>
वह मेरे पास कभी आया ही नहीं था,<br>
अत्यन्त उद्विग्न ज्ञान-तनाव वह<br>
सकर्मक प्रेम की वह अतिशयता<br>
वही फटेहाल रूप!!<br>
परम अभिव्यक्ति<br>
लगातार घूमती है जग में<br>
हर एक देश व राजनैतिक परिस्थिति<br>
प्रत्येक मानवीय स्वानुभूत आदर्श<br>
विवेक-प्रक्रिया, क्रियागत परिणति!!<br>
खोजता हूँ पठार...पहाड़...समुन्दर<br>
जहाँ मिल सके मुझे<br>
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