भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अक्षर ज्ञान कराना हे / नरेन्द्र प्रजापति

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लईहा के ला बईहा लेगे
नवां जमाना लाना हे

सुवा मैना, कुकुर बिलई ला
बहुते सीखायेत पढहायेन
अब बेरा कहां हे
पशु पक्षी ला पढ़ाय सिखायके

अब तो हमला
अनपढ़ अज्ञानी मन खेला

पढ़ना लिखा सिखाना हे
थुंके थूक मा बरा नरतों चुरय

नारा लगाये चम
हमर देश महान नइ बनय

तनिक फिकर करना हे
मनखे तन के मरम समझना हे
घर परिवार
समाज अऊ देश ला

सबले सुग्घर बना ले
शहर के रेजा कुली

गांव के मजदूर बनिहार
कन्हू झन झूट य भाई बहिनी

अंधरा अऊ भैरा ला तको
अक्षर ज्ञान कराना हे॥