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अक्स ने आईने का घर छोड़ा / शीन काफ़ निज़ाम
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अक्स ने आईने का घर छोड़ा
एक सौदा था जिसने सर छोड़ा
भागते मंज़रों ने आँखों में
जिस्म को सिर्फ़ आँख भर छोड़ा
हर तरफ़ रोशनी फैल गई
सांप ने जब कभी खंडहर छोड़ा
धूल उड़ती है धूप बैठी है
ओस ने आंसुओं का घर छोड़ा
खिड़कियाँ पीटती हैं सर शब भर
आख़िरी फ़र्द ने भी घर छोड़ा
क्या करोगे "निज़ाम" रातों में
ज़ख़्म की याद ने अगर छोड़ा