भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अखरोट का पेड़ / नाज़िम हिक़मत / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नाज़िम हिक़मत |अनुवादक=अनिल जनवि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 17: पंक्ति 17:
 
सुबह से शाम तक और रात भर
 
सुबह से शाम तक और रात भर
 
रेशमी रुमाल की तरह सरसराती हैं, भरभराती हैं
 
रेशमी रुमाल की तरह सरसराती हैं, भरभराती हैं
अरी प्यारे, तोड़ ले हमें और अपने आँसू पोंछ ले
+
अरे प्यारे, तोड़ ले हमें और अपने आँसू पोंछ ले
  
 
ये पत्तियाँ हीं मेरे हाथ हैं, एक लाख हरे हाथ
 
ये पत्तियाँ हीं मेरे हाथ हैं, एक लाख हरे हाथ

17:15, 21 सितम्बर 2023 के समय का अवतरण

झाग का बादल है मेरा सिर और मेरी छाती में समुद्र है
मैं गुलख़ान पार्क में खड़ा अखरोट का पेड़ हूँ
बड़ा हो गया हूँ बहुत, पुराना हूँ
देखिए, मेरी डगालें फैली हैं चारों तरफ़
लेकिन न तो पुलिस मेरे बारे में कुछ जानती है, न ही आप

गुलख़ान पार्क में खड़ा अखरोट का पेड़ हूँ मैं
मछलियों की तरह काँपती हैं मेरी पत्तियाँ
सुबह से शाम तक और रात भर
रेशमी रुमाल की तरह सरसराती हैं, भरभराती हैं
अरे प्यारे, तोड़ ले हमें और अपने आँसू पोंछ ले

ये पत्तियाँ हीं मेरे हाथ हैं, एक लाख हरे हाथ
अपने एक लाख हरे हाथ फैलाकर, मैं तुम्हें छूता हूँ इस्ताम्बूल
मेरी पत्तियाँ मेरी आँखें हैं. जिनसे मैं चारों तरफ़ देखता हूँ
अपनी लाखों आँखों से निहारता हूँ
निहारता हूँ तुम्हें इस्ताम्बूल

मेरी पत्तियाँ धड़कती हैं एक लाख दिलों की तरह
मैं गुलख़ान पार्क में खड़ा अखरोट का पेड़ हूँ
लेकिन न तो पुलिस मेरे बारे में कुछ जानती है, न ही आप

रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय