भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अगर फूल-काँटे में फरक हम समझते / तारा सिंह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) छो |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=तारा सिंह | |रचनाकार=तारा सिंह | ||
}} | }} | ||
− | :अगर | + | {{KKCatKavita}} |
− | :बेवफा | + | {{KKCatGhazal}} |
+ | <poem> | ||
+ | :अगर फूल-काँटे में फर्क हम समझते | ||
+ | :बेवफा तुमसे मुहब्बत न हम करते | ||
− | :जो | + | :जो मालूम होता अन्जामे-उल्फत |
− | :यूँ | + | :यूँ उल्फत से गले न हम लगते |
− | :बहुत | + | :बहुत दे चुके हैं इन्तहाएं मुहब्बत |
− | :न | + | :न होती मजबूरियाँ, शिकायत न हम करते |
− | :अगर | + | :अगर होता मुमकिन तुम्हें भूल जाना |
− | :खुदा | + | :खुदा की कसम मुहब्बते-खत न हम लिखते |
− | + | :जो मालूम होता, मुहब्बते बरबादी में तुम भी हो | |
− | :जो मालूम होता ,मुहब्बते | + | :शामिल, तो एहदे मुहब्बत न हम करते |
− | :शामिल , तो | + | </poem> |
18:10, 28 मार्च 2010 के समय का अवतरण
अगर फूल-काँटे में फर्क हम समझते
बेवफा तुमसे मुहब्बत न हम करते
जो मालूम होता अन्जामे-उल्फत
यूँ उल्फत से गले न हम लगते
बहुत दे चुके हैं इन्तहाएं मुहब्बत
न होती मजबूरियाँ, शिकायत न हम करते
अगर होता मुमकिन तुम्हें भूल जाना
खुदा की कसम मुहब्बते-खत न हम लिखते
जो मालूम होता, मुहब्बते बरबादी में तुम भी हो
शामिल, तो एहदे मुहब्बत न हम करते