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"अगर मैं धूप के सौदागरों से डर जाता / ज्ञान प्रकाश विवेक" के अवतरणों में अंतर

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मैं अपने हौसले को यक़ीनन बचाऊँगा
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अगर मैं धूप के सौदागरों से डर जाता
घर से निकल पड़ा हूँ तो फिर दूर जाऊँगा
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तो अपनी बर्फ़ उठाकर बता किधर जाता
  
तूफ़ान आज तुझसे है , मेरा मुकाबला
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पकड़ के छोड़ दिया मैंने एक जुगनू को
तू तो बुझाएगा दीये, पर मैं जलाऊँगा
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मैं उससे खेलता रहता तो वो बिखर जाता
  
ये चुटकुला उधार लिए जा रहा हूँ मैं
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मुझे यक़ीन था कि चोर लौट आएगा
घर में हैं भूखी बेटियाँ उनको हँसाऊँगा
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फटी क़मीज़ मेरी ले वो किधर जाता
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अगर मैं उसको बता कि मैं हूँ शीशे का
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मेरा रक़ीब मुझे चूर-चूर कर जाता
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तमाम रात भिखारी भटकता फिरता रहा
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जो होता उसका कोई घर तो वो भी घर जाता
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तमाम  उम्र  बनाई  हैं तूने  बन्दूकें
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अगर खिलौने बनाता तो कुछ सँवर जाता.
  
गुल्लक में एक दर्द का सिक्का है दोस्तो,
 
बाज़ार जा रहा कि उसको भुनाऊँगा
 
  
अब सोचता हूँ दावतें दे कर मैँ अब्र को
 
कागज़ के घर में उसको कहाँ पर बिठाऊँगा.
 
 
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18:55, 11 अक्टूबर 2008 का अवतरण

अगर मैं धूप के सौदागरों से डर जाता
तो अपनी बर्फ़ उठाकर बता किधर जाता

पकड़ के छोड़ दिया मैंने एक जुगनू को
मैं उससे खेलता रहता तो वो बिखर जाता

मुझे यक़ीन था कि चोर लौट आएगा
फटी क़मीज़ मेरी ले वो किधर जाता

अगर मैं उसको बता कि मैं हूँ शीशे का
मेरा रक़ीब मुझे चूर-चूर कर जाता

तमाम रात भिखारी भटकता फिरता रहा
जो होता उसका कोई घर तो वो भी घर जाता

तमाम उम्र बनाई हैं तूने बन्दूकें
अगर खिलौने बनाता तो कुछ सँवर जाता.