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अगर / साधना सिन्हा

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हर व्यक्ति
एक पात्र होता
लिखूँ
कहानी अगर मैं

हर द्श्य
एक कविता होता
जोडूँ
शब्दों की लड़ी
अगर मैं

हर कुहू, पियू
एक गीत होता
स्वरों में बांधूँ
अगर मैं

हर कंपन
चंदा–बदरा की
लुका-छिपी में रसभरी
बदली की ऊदी साड़ी पर
सुनहरी किनारी वाला
एक चित्र होता
रंगों को करूँ आमंत्रित
अगर मैं

अगर, गर न होता-
पन्नों की पीड़ा होता
तारों से रिसता दर्द होता
झूमते मन का सुखद क्षण होता
हर व्यक्ति एक पात्र होता
हर द्श्य एक कविता
हर गुंजन स्वर–लहरी होता
हर बादल रंगों में आ बसता
अगर गर न होता ।