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अघोरी काळ / कन्हैया लाल सेठिया

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फिरै
हांडतो
अघोरी काळ
सुण’र दकाळ
भाज छूट्यो मानखो
पड़्या साव सूना
गांव’र गुवाड़
बिछड़ग्या मांवां स्यूं
नांनां टाबर,
टूटग्या सम्बन्ध’र सगपण
रिसावै एक एक मुठ्ठी
दाणां रै खातर बै
जका बाजता अन्नदाता,
पड़ग्यो बिखो
खावै खेजड़ां रा छोडा
कळपै आखी जीवा जूण
उड़ग्या पंखेरू
रया अणहेज्या
आळां में इंडा,
जाता रया
रूखां रा मतळबी भायला
हरियल पानड़ा,
पण कठै जावै
बापड़ा च्यार पगा सांसर ?
पटक लिया बां नै बैसग्यां
लूंठी भूख
मंडग्यो
नागड़ी मौत रै घरां
मोटो उच्छब !