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अच्छी बूबू टीका लेंगी, अच्छी बूबू मोतिया लेंगी जी / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

अच्छी बूबू<ref>ननद के लिए प्यार भरा संबोधन</ref> टीका<ref>ललाटे का आभूषण</ref> लेंगी, अच्छी बूबू मोतिया<ref>मोती की लड़ी</ref> लेंगी जी।
मेरे आरजु का है ननदोइया<ref>ननद का पति</ref> ओभी जरा देखेगा जी॥1॥
नहीं भाभी टीका लूँगी, नहीं भाभी मोतिया लूँगी जी।
भाभी, ऐसे ऐसे टीके बहुत हैं, संदूकचा<ref>काठ का बड़ा बक्सा</ref> भरा होगा जी॥2॥
अच्छी बूबू बेसर लेंगी, अच्छी बूबू चुनिया<ref>बहुत छोटा नग</ref> लेंगी जी।
मेरे आरजू का है ननदोइया, ओभी जरा देखेगा जी॥3॥
अरे नहीं भाभी बेसर लूँगी, नहीं भाभी, चुनिया लूँगी।
ऐसे ऐसे बेसर बहुत हैं जी, संदूकचा मेरा भरा होगा जी॥4॥
अच्छी बूबू कँगना लेंगी, अच्छी बीबी कड़वा<ref>कड़ा। हाथ में पहनने का एक आभूषण</ref> लेंगी।
मेरे आरजू का है ननदोइया, ओभी जरा देखेगा जी॥5॥
नहीं भाभी कँगना लूँगी, नहीं भाभी कड़वा लूँगी।
शाद<ref>प्रसन्न, भरा पूरा</ref> रहे मेरा नन्हा होरिलवा, यही बहुत है जी॥6॥

शब्दार्थ
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