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अजनबी खुद को लगे हम / श्रद्धा जैन

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अजनबी खुद को लगे हम
इस कदर तन्हा हुए हम

उम्र भर इस सोच में थे
क्या कभी सोचे गए हम

खूबसूरत ज़िंदगी थी
तुम से मिलकर जब बने हम

सुबह को आँखों में रख कर
रात भर पल - पल जले हम

खो गए हम भीड़ में जब
फिर बहुत ढूँढे गए हम

जीस्त के रस्ते बहुत थे
हर तरफ रोके गए हम

लफ्ज़ जब उरियाँ हुए तो
फिर बहुत रुसवा हुए हम

चाँद दरिया में खड़ा था
आसमाँ तकते रहे हम

जागने का ख़्वाब ले कर
देर तक सोते रहे हम

तेरे सच को पढ़ लिया था
बस इसी खातिर मिटे हम