भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अजनबी / पृथ्वी पाल रैणा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पृथ्वी पाल रैणा }} {{KKCatKavita}} <poem> मैं ही...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
मैं ही वह मैं नहीं हूँ,
+
मैं अजनबी हूँ,
 
या यह शहर पराया है ?
 
या यह शहर पराया है ?
 
मेरी आँखों में उमड़ते हुए
 
मेरी आँखों में उमड़ते हुए

20:30, 5 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण

मैं अजनबी हूँ,
या यह शहर पराया है ?
मेरी आँखों में उमड़ते हुए
सैलाव को कोई देखता नहीं ।
इस तरह गुजऱ जाता हूं
इस शहर की गलियों से
जैसे कि यहाँ कोई मुझे
जानता नहीं।
ये लोग भी कैसे हैं
गुमसुम-से
थके-हारे- से
खुद अपनी ही तस्वीर को
पहचानते नहीं ।
मैं खो गया हूँ भीड़ में
मेरी पहचान भी गुम है
अब जाकर किसे पूछूँ
मुझे जानते हो क्या ?