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"अजब यक़ीन उस शख़्स के गुमान में था / ताबिश कमाल" के अवतरणों में अंतर

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12:38, 29 मार्च 2014 के समय का अवतरण

अजब यक़ीन उस शख़्स के गुमान में था
वो बात करते हुए भी नई उड़ान में था

हवा भरी हुई फिरती थी अब के साहिल पर
कुछ ऐसा हौसला कष्ती के बादबाँ में था

हमारे भीगे हुए पर नहीं खुले वर्ना
हमें बुलाता सितारा तो आसमान में था

उतर गया है रग-ओ-पय में ज़ाइक़ा उस का
अजीब शहद सा कल रात उस ज़बान में था

खुली तो आँख तो ‘ताबिष’ कमाल ये देखा
वो मेरी रूह में था और मैं मकान में था