भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अड़बड़िहा दुनियां के अड़बड़ हे बात गा / रविशंकर शुक्ल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अदबड़िया दुनियां के अड़बड़ हे बात गा।
मनखे ला लीलथे मनखे के जात गा।
बड़े बड़े गंडा बांघे
हाथ धरे झंडा
इती उती घुमत हावयं
बोली बोलये अईसे जईसे पोनी धुने तांत गा
जेखर पुरखा राजा
हरिश्चंद्र ला बिसाबे
नाती पोता ओखरे
येडे हमीं ला डेरुवाये
खोटहा चांदी के रुपिया ला घरे हाथ गा
टुटहा खेलौना कस
सबों दिखत हावयं
भूलुवा अंधरा खोरबा
ठुठुवा कोनो हावय
एके झऊहां से में सबो छटपटात गा
अइसन बाढ़त हावय
संगी रे महंगाई
नई दिखय कोनो
भइया रे ददा दाई
हाथी ले महंगी हे हाथी के दांत गा।