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अति घर्षण से हिम से भी उठती चिनगारी
जागा बिहार में एक कृषक दृढ दृढ़ व्रत-धारी
वह राजकुमार सुकुल जो लाया गाँधी को
गाँधी क्या, वह लाया बटोरकर आँधी को
पौरुष ज्यों अपने लिए नया पथ गढ़ता था
उस और कक्ष में विष से पूरित थाल सजा
गोरे दम्पति बैठे थे पथ से पर कान लगा
थपकी कपाट पर सुनी कि अंतस् की पुकार
टकरायी प्राणों से आ-आकर बार-बार
पति तो बैठा ही रहा अकल्पित भय से भरडर
पत्नी ने साहस किया, द्वार खोले आकर
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