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अधर सजे/ज्योत्स्ना शर्मा

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मन ने पहचाना
अपना या पराया ।
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बोझ न ढोना
क्या हीरे और मोती
संग न जाएँ
सुन्दर कर्म भले
औ’ मुस्कान सुहाए ।
</poem>