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अध्यापक से / रघुवीर सहाय

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मरने से पहले घर एक बार जाने की आकांक्षा
साहित्य के अंदर कितना पिटा हुआ वाक्य बन जाती है ।

अरे भले आदमी, अध्यापक,
लेखक की यह जीवन भर की कमाई थी
करुणा से स्वर कंपाय तुमने बहाय दी ।