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अनकहा प्रेम / निर्देश निधि

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रजवाहे के साथ लगी उस पुलिया से भी
हो गया है प्रेम मुझे
खड़े रहकर जिस पर
प्रतीक्षा करते हो तुम घंटों
मुझसे क्षणिक मिलन की
मेरी साइकिल के पहिये भी तो जैसे
खोने लगते हैं वृत्त अपना
होकर चौकोर,
हो जाना चाहते हैं स्थिर
ठीक सामने तुम्हारे
पुलिया वाले उस मोड़ पर
तुम्हारे सांकेतिक चुंबन की दहक से
पिघल-सी जाती है
मेरी साँवली देह उस पल
बागड़ियों की भट्टी में धधकते लौह-सी
जिसे महसूस करते होगे
तुम ज़रूर अपनी देह पर
ढलकते हुए देर तलक
इस अनकहे, स्थायित्व भरे
प्रेम के भार से झुकी तुम्हारी दृष्टि
जिसे और थोड़ा भार सौंपती हूँ मैं
अपनी दृष्टि के गुरुत्व से
मेरी छुअन लेकर
तुम्हारे तन से टकराई
उन्मुक्त पवन से बढ़ती तुम्हारी धड़कन,
अपने सीने में
जस की तस सुनती हूँ मैं
माद्दा रखती हूँ मैं
अपने इस अपूर्ण, अनकहे, कमनीय प्रेम को पूर्णता देने का
धता बताकर सभी आप-खाप पंचायतों की
सतर्क पहरेदारी को।