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== शीर्षक ==
 
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   मुक्तक  
 
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        १
 
अब आदमी का इक नया प्रकार हो गया,  
 
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आदमी का आदमी शिकार हो गया,  
 
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जरुरत नहीं आखेट को अब कानन गमन की,  
 
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शहर में ही गोश्त का बाजार हो गया |
 
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माँ के जाते ही बाप गैर हो गया
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अपने ही लहू से उसको बैर हो गया
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घर ले आया इक पति हंता नार को
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आप ही कुटुंब पर कहर हो गया
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आपने तारीफ की हम खूबसूरत हो गये
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आइना देखते हम  खुद में ही खो गये
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जाने क्या जादू किया आपके इल्फजों ने
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निखर कर हम सोंदर्य की मूरत हो गये

12:50, 23 जुलाई 2011 का अवतरण

शीर्षक

 मुक्तक 
        १

अब आदमी का इक नया प्रकार हो गया, आदमी का आदमी शिकार हो गया, जरुरत नहीं आखेट को अब कानन गमन की, शहर में ही गोश्त का बाजार हो गया |

माँ के जाते ही बाप गैर हो गया अपने ही लहू से उसको बैर हो गया घर ले आया इक पति हंता नार को आप ही कुटुंब पर कहर हो गया

आपने तारीफ की हम खूबसूरत हो गये आइना देखते हम खुद में ही खो गये जाने क्या जादू किया आपके इल्फजों ने निखर कर हम सोंदर्य की मूरत हो गये