भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अनाथ-सी आवाज़ / त्रिपुरारि कुमार शर्मा

Kavita Kosh से
Tripurari Kumar Sharma (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:36, 26 दिसम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिपुरारि कुमार शर्मा }} {{KKCatKavita}} <Poem...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं जब भी तुमसे बात करना चाहता हूँ
देर तक देखता रहता हूँ ख़लाओं में कहीं
एक अनाथ-सी आवाज़ आह भरती है
अपनी आँख में तब बात बोया करता हूँ
मेरे ख़याल के खेतों में ओस गिरती है
सफ़ेद बर्फ़-सी जम जाती है पुतली पर
लहूलुहान नज़र आती है ज़ुबान मेरी
मगर पुकार में कोई शिकन नहीं मिलती
बस उम्मीद की छाती पर छाले उगते हैं
अभी तो फ़ासलों के फ़र्श पर लेटा हुआ हूँ
साँस लेती हुई हर सोच सिहर उठती है
मेरे दिमाग़ में कुछ दर्द-सा दम भरता है
बदन में बहता हुआ लाल लहू ज़िंदा है
जाने क्या सोचकर किस बात से शर्मिंदा है
मेरी पलकों ने तुम्हें जब भी चूमना चाहा
मैंने फ़ासलों की हर फसल जलाई है
जैसे होली से पहले जलाए रात कोई
जैसे होंठ में दफ़नाई जाए बात कोई
जैसे प्यास में पोशीदा हो बरसात कोई
जैसे ख़्वाब के खेतों में मुलाक़ात कोई
जैसे नीलाम-सी हो जाए नीली ज़ात कोई
जैसे जीत में जम्हाई ले-ले मात कोई
सिवाय इसके मुझे कुछ भी नहीं कहना है
तुम्हारी आँख के आँचल के तले रहना है