भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अनोखी रीत/ ज्योत्स्ना शर्मा

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:45, 7 फ़रवरी 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


17
दर्द ही बाँटे
अबूझ है पहेली
प्रीत सहेली
अक्सर ये रुलाए
क्यों दिल को है भाए ?
18
सोए वक़्त ने
करवट बदली
फिर सो गया
तड़पती ज़िंदगी
सुख-चैन खो गया।
19
अनोखी रीत
किसने लिख डाले
काली चादर
इतने सारे गीत
ज्यों जलते हों दीप ।
20
मिले ही क्यों थे?
मीत मुझे राहों में
ख़्वाबों से आते
बिन दो बोल कहे
क्यों मौन चले जाते ?
21
बहुत प्यारा
संसार हमारा है
मान भी लो न
महकाया जिसने
वो प्यार तुम्हारा है ।
22
मेरी सुन लो
कहो कुछ अपनी
मन छलता
रह जाना यूँ मौन
तुम्हारा है खलता ।
23
राहों में काँटे
कि हों फूल ,चलना
थाम के दिल
उठते हैं क़दम
मिले तभी मंज़िल ।
24
मीत पथ के
मौन संग चलना
देता है पीड़ा
ऐसे बीच हमारे
अबोले का पलना ।