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अन्तर्बोध / महेन्द्र भटनागर

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जब-जब मैंने सोचा मन में —
क्या सार रखा है जीवन में ?
है जब क़दम-क़दम पर फिसलन
औ’ अपमान, व्यथाएँ, बंधन ;
पर, मिटने की जब-जब ठानी
मम वसुधा-सम प्राण न माने !

इति का कहना क्या, जब अथ में
दुख-ही-दुख है जीवन-पथ में,
शूलों का अम्बार लगा है,
कटुता का बाज़ार लगा है,
पर, रुकने की जब-जब ठानी
मम ध्रुव-सम ये प्राण न माने !
1945