भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अन्ना बाबा को भी अब भगवान होने दीजिए / आनंद कुमार द्विवेदी

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:53, 17 जून 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खुद-ब-खुद ही झूठ सच का ज्ञान होने दीजिए
वरना बेहतर है, मुझे नादान होने दीजिए

थक गया हूँ जिंदगी को शहर सा जीते हुए
गाँव को फिर से मेरी पहचान होने दीजिये

दो तिहाई से भी ज्यादा लोग भूखे हैं यहाँ
आप खुश रहिये उन्हें हलकान होने दीजिये

रात में हर रहनुमा की असलियत दिख जाएगी
शहर की सड़कें जरा सुनसान होने दीजिये

बैठकर दिल्ली में किस्मत मुल्क की जो लिख रहे
पहले उनको कम-अज़-कम इंसान होने दीजिए

उनके दंगे , इनके घपले, देश को महंगे पड़े
अन्ना- बाबा को भी अब भगवान होने दीजिये

कौन जाने आपको ‘आनंद’ अपना सा लगे
साथ आने दीजिये, पहचान होने दीजिये