भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अपना शहर / मख़दूम मोहिउद्दीन

14 bytes removed, 03:06, 28 अप्रैल 2011
<poem>
ये शहर अपना
 अजाब अजब शहर है के 
रातों में
 
सड़क पे चलिए तो
 
सरगोशियाँ सी करता है
वो लाके ज़ख्म दिखाता है
 
राजे दिल की तरह
 
दरीचे बंद
 
गली चुप
 
निढाल दीवारें
 
कोढ़ा मोहरें-ब-लब
 
घरों में मैय्यतें ठहरी हुई हैं बरसों से
 
किराए पर
</poem>