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"अपराध यही है / राहुल शिवाय" के अवतरणों में अंतर

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मैं कहीं भी रहूँ, तू कहीं भी रहे
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मेरा  तो  अपराध  यही  है,
हर समय तुझको खुद में ही पाऊँगा मैं।
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मैंने  तुमसे  प्यार  किया  है।
चाहे होगी खुशी या कोई गम ही हो
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हर पलों में तुझे गुनगुनाऊँगा मैं।।
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तू नहीं होगी जब, होगी यादें तेरी
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कौन मिटाएगा तुम बिन अब
चाहे होगी न पूरी ये ख़्वाहिश मेरी
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इस जीवन की तिमिर निशा को,
मरते दम तक तुम्हीं को ही चाहूँगा मैं।
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कौन मिटा सकता है तुम बिन
मैं कहीं भी रहूँ, तू कहीं भी रहे
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प्रिय दर्शन की अमिट तृषा को।
हर समय तुझको खुद में ही पाऊँगा मैं।।
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होगी आँखें ये नम, होगा दिल में भी गम
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दोष तुम्हें दूँ या जग को दूँ -
चाहे तू न कहे मुझको अपना सनम
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खुद जीवन निस्सार किया है।
फिर भी तुझको कभी न भुलाऊँगा मैं।
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मैं कहीं भी रहूँ, तू कहीं भी रहे
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हर समय तुझको खुद में ही पाऊँगा मैं।।
+
  
तू ही मंजिल मेरी, तू ही मेरी डगर
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भूलूँ कैसे वह आलिंगन
तेरे सँग मैं जिया दो पलों को मगर
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और साथ जो देखे सपने,
दो पलों में ही जीवन बिताऊँगा मैं।
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इस बेगानी दुनिया में बस
मैं कहीं भी रहूँ, तू कहीं भी रहे
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तुम मुझको लगते थे अपने।
हर समय तुझको खुद में ही पाऊँगा मैं।।
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कली अधखिली रही प्रेम की-
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काँटों से अभिसार किया है।
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मेरी बस इतनी अभिलाषा
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हो मधुमास तुम्हारे आँगन,
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अधर  तुम्हारे  हँसी  बिखेरें
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हास भरा हो सारा जीवन।
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मेरा क्या मैंने जो पाया-
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उसको ही स्वीकार किया है।
 
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16:53, 18 फ़रवरी 2020 के समय का अवतरण

मेरा तो अपराध यही है,
मैंने तुमसे प्यार किया है।

कौन मिटाएगा तुम बिन अब
इस जीवन की तिमिर निशा को,
कौन मिटा सकता है तुम बिन
प्रिय दर्शन की अमिट तृषा को।

दोष तुम्हें दूँ या जग को दूँ -
खुद जीवन निस्सार किया है।

भूलूँ कैसे वह आलिंगन
और साथ जो देखे सपने,
इस बेगानी दुनिया में बस
तुम मुझको लगते थे अपने।

कली अधखिली रही प्रेम की-
काँटों से अभिसार किया है।

मेरी बस इतनी अभिलाषा
हो मधुमास तुम्हारे आँगन,
अधर तुम्हारे हँसी बिखेरें
हास भरा हो सारा जीवन।

मेरा क्या मैंने जो पाया-
उसको ही स्वीकार किया है।