भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अब तक वही बचने की सिमटने की अदा / जाँ निसार अख़्तर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जाँ निसार अख़्तर }} Category:रुबाई <poem> अब तक वही बचने क…) |
छो |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=जाँ निसार अख़्तर | |रचनाकार=जाँ निसार अख़्तर | ||
+ | |संग्रह=घर-आँगन (रुबाइयाँ) / जाँ निसार अख़्तर | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatRubaayi}} | |
<poem> | <poem> | ||
अब तक वही बचने की सिमटने की अदा | अब तक वही बचने की सिमटने की अदा |
18:46, 19 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
अब तक वही बचने की सिमटने की अदा
हर बार मनाता है मेरा प्यार तुझे
समझा था तुझे जीत चुका हूँ लेकिन
लगता है कि जीतना है हर बार तुझे