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"अब भी / शैलेन्द्र चौहान" के अवतरणों में अंतर

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सभी माएँ  
 
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होती हैं प्रसन्न
 
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अपने बच्चों के प्रति प्रदर्शित  
 
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स्नेह से
 
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बहुत अलग थी प्रतिक्रिया
 
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उस बालक की माँ की
 
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असहज हुई वह
 
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संशय था, कुछ भय भी
 
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आँखों में उसकी
 
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देख अजनबी चेहरे
 
देख अजनबी चेहरे
 
 
अक्सर तो नन्हे बालक
 
अक्सर तो नन्हे बालक
 
 
रोने-रोने को होते हैं
 
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कभी-कभी जब
 
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बच्चे होते हैं प्रसन्न
 
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माएँ होने लगती हैं भयभीत
 
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अजानी आशंकाओँ से
 
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अपघट से
 
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अब भी होता है
 
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ऐसा क्यों?
 
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01:10, 14 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण

सभी माएँ
होती हैं प्रसन्न
अपने बच्चों के प्रति प्रदर्शित
स्नेह से

बहुत अलग थी प्रतिक्रिया
उस बालक की माँ की
असहज हुई वह
संशय था, कुछ भय भी
आँखों में उसकी

देख अजनबी चेहरे
अक्सर तो नन्हे बालक
रोने-रोने को होते हैं

कभी-कभी जब
बच्चे होते हैं प्रसन्न
माएँ होने लगती हैं भयभीत
अजानी आशंकाओँ से
अपघट से

अब भी होता है
ऐसा क्यों?