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"अब लौं नसानी, अब न नसैहों / तुलसीदास" के अवतरणों में अंतर
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स्याम रूप सुचि रुचिर कसौटी चित कंचनहिं कसैहौं॥ | स्याम रूप सुचि रुचिर कसौटी चित कंचनहिं कसैहौं॥ | ||
परबस जानि हँस्यो इन इंद्रिन निज बस ह्वै न हँसैहौं। | परबस जानि हँस्यो इन इंद्रिन निज बस ह्वै न हँसैहौं। | ||
− | मन मधुपहिं प्रन करि, तुलसी | + | मन मधुपहिं प्रन करि, तुलसी रघुपति पदकमल बसैहौं॥ |
08:09, 6 अप्रैल 2009 का अवतरण
अब लौं नसानी, अब न नसैहों।
रामकृपा भव निसा सिरानी जागे फिर न डसैहौं॥
पायो नाम चारु चिंतामनि उर करतें न खसैहौं।
स्याम रूप सुचि रुचिर कसौटी चित कंचनहिं कसैहौं॥
परबस जानि हँस्यो इन इंद्रिन निज बस ह्वै न हँसैहौं।
मन मधुपहिं प्रन करि, तुलसी रघुपति पदकमल बसैहौं॥