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अभी ज़ख़्म-ए-दिल को दिखाया नहीं है / रंजीता सिंह फ़लक

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अभी ज़ख़्म-ए-दिल को दिखाया नहीं है ।
जो बीती है हम पर बताया नहीं है ।

सितारों को इसका शिकवा बहुत है,
कि जुगनू को उसने छिपाया नहीं है ।

मेरी दस्तरस में तो सब कुछ है लेकिन
तुम्हें चाहिए क्या, बताया नहीं है ।

मेरी दास्ताँ आईने की तरह है,
किसी से भी मैंने छिपाया नहीं है ।

कई राज़ हैं मेरे सीने में लेकिन
ज़माने को क़िस्सा सुनाया नहीं है ।

बहुत होता रहता है नुक़सान मेरा,
मैं ख़ुद्दार हूँ, ये भुलाया नहीं है ।

मुझे जिसने रुसवा किया है मुसलसल
वो अपना है मेरा, पराया नहीं है ।

अधूरे सफ़र को मुकम्मल तो कर लो,
मुझे हमसफ़र क्यों बनाया नहीं है ।

पलटकर मैं आती तेरे दर पर लेकिन
तबीयत से तुमने बुलाया नहीं है ।

तेरी आस्ताँ पे जबीं जब झुकाई,
झुकाकर उसे फिर उठाया नहीं है ।

'फ़लक' की दुआ है, कभी रद न होगी,
यक़ीनन किसी को रुलाया नहीं है ।