भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अमीबा / प्रदीपशुक्ल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:50, 1 सितम्बर 2016 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक अमीबा बड़े मज़े से
नाले में था रहता
अरे! वही गंदा नाला, जो
सड़क पार था बहता

कहने को तो एक अमीबा
ढेरों उसके बच्चे
नाले में उनकी कालोनी
रहते गुच्छे-गुच्छे

क्रिकेट खेलते हुए गेंद
नाले में गिरी छपाक
आव न देखा ताव न देखा
पप्पू गया तपाक

साथ गेंद के कई अमीबा
पप्पू लेकर आया
बड़े-बड़े नाखून, भूल से
उनको वहीं छुपाया

हाथ नहीं धोए अच्छे से
पप्पू ने घर जाकर
ख़ुश थे बहुत अमीबा सारे
उसके पेट में जाकर

रात हुई पप्पू चिल्लाया
हुई पेट में गुड़-गुड़
सारे बच्चे समझ रहे हैं
कहाँ-कहाँ थी गड़बड़