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अमुआ मजरी गेल महुआ मजरल गे सजनी / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

प्रस्तुत गीत में आम और महुए की मंजरी का उल्लेख करके वसंत ऋतु क आगमन की सूचना दी गई है। महादेव के आने पर उन्हें चंदन का तिलक और गौरी की माँग में सिंदूर करने का वर्णन हुआ है। दोनों को आशीर्वाद देकर युग-युग तक जीने और सौभाग्यशाली बने रहने की कामना की गई है।

अमुआ<ref>आम</ref> मंजरी गेल<ref>मंजर आ गये</ref> महुआ मजरल गे सजनी, परि गेल चन्नन के ढार<ref>ढालना; डालना</ref>।

अहि बाटे<ref>रास्ते से</ref> ऐता महादेब देब गे सजनी, परि गेल चन्नन के ढार॥1॥
चन्नन छिलकी<ref>छिलक कर; छिटककर</ref> मँगिया<ref>माँग पर</ref> परि गेल गे सजनी, जीबहो<ref>जीवित रहो</ref> जीबछ<ref>जीनेवाला</ref> केरा<ref>का</ref> पूत।
अमुआ मजरी गेल महुआ मजरल गे सजनी, परि गेल सिनुर के ढार॥2॥
अहि बटिया ऐती गौरा दाय गे सजनी, परि गेल सिनुर के ढार।
सिनुर छिलकी मँगिया परि गेल गे सजनी, जुगे जुगे बाढ़ै अहिबात॥3॥

शब्दार्थ
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