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अम्मा के जौ / सत्यनारायण स्नेही

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हर नये वर्ष के पहले दिन
बीजती है अम्मा जौ
रखती उपवास नौ दिनों तक
प्रतिदिन करती पूजा
सींचती है जौ
सुनती पंचांग में दिया
वर्षराजादि फल
करती है आकलन
पूरे वर्ष की आबो-हवा का।
अम्मा के नये साल में
नहीं होता जश्न
नहीं किया जाता
रात बारह बजे का इन्तज़ार
नहीं दी जाती बधाई और शुभकामनाएँ
नौ दिनों में
जौ ही बता देते हैं अम्मा को
पूरे वर्ष का मिज़ाज़।
अम्मा नहीं जानती
नए साल के
सरकारी कलैंडर का मतलब
उनके लिए
हर नया साल
कमज़ोर होता शरीर
बडे होते बच्चे हैं
जो ढूँढ रहे हैं हर दिन
नया आसमान
नया सवेरा।
अम्मा नवें दिन
बाँधती है हरे जौ
पोटली में
क्रूर ग्रहों की शांति के लिए
रखती है कुछ जौ
बच्चों की जेबों में
ताकि
मंगलमय हो
बच्चों का नया साल